जालौन। आज से नवरात्रि के पर्व की शुरूआत हुई हो रही है। इन 9 दिनों तक लगातार 'युवा जय माता दी' के जयकारे लगाते हुए नारी शक्ति की पूजा अर्चना करेंगे। लेकिन मन में एक सवाल उठ रहा है कि क्या हम परंपराओं के बंधक बनकर ही रह गए हैं। क्या जो हमें विरासतन मिला है उसे हम आत्मसात् करना भूल गए हैं। क्योंकि आज जिधर भी देखें और सुनें हर तरफ बालात्कार, दुष्कर्म की घटनाएं देखने पढ़ने और सुनने को मिल जाएंगी। आखिर नारी की पूजा करने वाले देश में आज इस प्रकार के कृकृत्यों की घटनाएं देखने और सुनने को मिल रही हैं। इस पर विचार करने का आज उपयुक्त समय है। क्योंकि आज नारी शक्ति के पर्व की शुरूआत भी है।
हम यहां हाथरस कांड को लेकर भाजपा सरकार अथवा राजस्थान में हुए बलात्कार कांड में कांग्रेस सरकार से क्या गलतियां हुईं अथवा राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप की नहीं कर रहे हैं। क्योंकि वह तो एक अलग विषय है। हम यहां बात कर रहे हैं नैतिक मूल्यों की, क्योंकि नैतिक मूल्य हमें खुद तय करने होंगे। इसके लिए कोई राजनैतिक पार्टी अथवा कोई सरकार जिम्मेदार है। यह हमें स्वयं सीखने होंगे और अपने बच्चों को सिखाने होंगे। हर निर्भया कांड, हाथरस कांड को लेकर तमाम बहसें होंती हैं। कानूनों में सुधार के उपाय अपनाए जाते हैं लेकिन जब तक हम स्वयं इस बारे में सचेत नहीं होंगे और अपने बच्चों को सचेत नहीं करेंगे तब तक यह घटनाएं रूकने वाली नहीं हैं।
जिस देश में नारी को देवी मानकर पूजा की जाती है उस देश मंे इस प्रकार की बढ़ती घटनाओं के लिए कहीं न कहीं हम ही जिम्मेदार हैं। हर घटना के बाद सैंकड़ों, हजारों की संख्या में युवा सड़कों पर मोमबत्ती लेकर निकल आते हैं। लेकिन इससे हुआ क्या, क्या समाज में कोई बदलाव आया। हमारी मंशा यहां युवाओं पर सवाल उठाने की नहीं है। यह उचित है, क्योंकि इससे अर्द्ध सुसुप्तावस्था में बैठी सरकार चेतना मंे आती है। लेकिन यहां मैं उन्हीं युवाओं से सवाल पूछना चाहूंगा कि जिसका जबाव वह स्वयं ही मन में दें कि क्या जब आप अकेले जाते हैं यदि उन्हें रास्ते में कोई सुंदर लड़की मिलती है तो क्या वह उसे नजर उठाकर दोबारा नहीं देखना चाहते, यदि कोई उनसे हंसकर बोल दे तो क्या वह उससे ‘और अधिक’ अपेक्षा नहीं करते। देवी पांडांलों मंे क्या आप शुद्ध मन, आचार और विचार के साथ जाते हैं। व्हाट्सएप ग्रुप बेबसाइट पर अश्लील सामग्री की भरमार है क्या आप इनको नहीं देखते हैं। इसका ईमानदारी से स्वयं को उत्तर दें। और यदि आपको उत्तर देने में समय लग रहा है तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि असल समस्या क्या है।
अतः हमें चाहिए कि समाज अपनी नैतिक जिम्मेदारी को स्वयं तय करे। अपने घरों का माहौल बदलने का प्रयास करें। बच्चों को शुरू से ही नारियों का सम्मान सिखाएं। उन्हें धार्मिक और प्रेरक कहानियां पढ़ने को दें। अंग्रेजी माध्यम में बच्चों को पढ़ाएं अवश्य लेकिन उन्हें अंग्रेजों वाले संस्कार न दें। उनके लिए व्यभिचार सामान्य बात है। यदि आप एक भी बच्चे को संस्कारित कर ले गए तो यह आपके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। देवी पूजा के साथ जीवित देवियों का भी सम्मान करना सीख लें। तभी नौ देवी स्वरूपों की पूजा सार्थक सिद्ध हो सकेगी।
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