जालौन। अब समय आ गया है कि देश की शिक्षा नीति के बारे में एक बार फिर से सोचा जाए। शिक्षा के साथ छात्रों को वह हुनर भी सिखाए जाएं और उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए जिससे रोजमर्रा के कामकाज वह ठीक से कर सकें। कोरोना के समय आक्सीजन की आवश्कयता पड़ी। आक्सीजन कंसंट्रेटर मशीन को बहुत से लोग खरीद सकते हैं, घर पर किराए पर लगवा सकते हैं, लेकिन उसे लगाने वाले टेक्नीशियन, कंपाउंडर कहां से लाएंगे। हमारे पास ट्रेंड कम्पाउंडर हैं ही नहीं। जो थोड़े बहुत हैं वे अस्पतालों को ही कम पड़ रहे हैं। इसी प्रकार आपदा प्रबंधन के बारे में हमें जानकारी ही नहीं है कि बाढ़, भूकंप, आग से कैसे बचें। शिक्षा का मतलब उपयोगी नागरिक तैयार करना होना चाहिए चाहे खेती हो, उद्योग हो, अनुसंधान, जीवन रक्षा, या फिर जीवन उपयोगी कार्य। ताकि हमें छोटे छोटे काम के लिए किसी पर आश्रित न होना पड़े, और जरूरत पडने पर किसी अपने या दूसरे के काम आ सकें। इसी को लेकर नगर व क्षेत्र के लोगों ने हमसे अपने विचार शेयर किए हैं-
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के ब्लाॅक अध्यक्ष लालजी पाठक बातते हैं कि बीएससी, एमएससी पढ़े छात्र छात्रा अपने घर के किसी सदस्य को इंजेक्शन तक लगाने का हुनर तक नहीं जानते। कोई कठिन परिस्थिति आने पर डाॅक्टर का इंतजार करना पड़ता है। इस प्रकार की बेसिक स्क्लि को स्कूल, काॅलेजों में न सिर्फ सिखाया जाना चाहिए। बल्कि प्राथमिक स्तर से ही इसे पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए।
मलकपुरा ग्राम पंचायत से चुने गए प्रधान अमित भारतीय बताते हैं कि कि स्कूलों में आपेक्षिक घनत्व, लाॅग सारिणी आदि तमाम चीजें सिखाई जाती हैं जिनका व्यक्तिगत जीवन में बहुत कम उपयोग होता है। यदि इनके साथ आधुनिक खेती के गुर, आपदा प्रबंधन, बाढ़, भूकंप, आग से जिंदगी को बचाना जो कि आफत की घड़ी में सचमुच समाज के काम आ सकते हैं। इसको स्कूली शिक्षा में ही सिखाने का ध्येय होना चाहिए।
डाॅ. कीर्ति माहेश्वरी कहती हैं कि कोरोना महामारी से कुछ सबक भी सीखने होंगे। स्कूल व काॅलेज स्तर पर सभी छात्रों को सिखाया जाए कि मरीज का ब्लड प्रेशर कैसे नापा जाता है, ऑक्सीजन सैचुरेशन कैसे चेक किया जाता है, ऑक्सीजन मशीन का उपयोग कैसे करना है, नेबुलाइजेशन कैसे करते हैं। यदि यह चीजें बेसिक पाठ्यक्रम में शामिल होंगी और इनकी ट्रेनिंग दी जाए तो काफी हद तक समाज को फायदा पहुंचेगा।
छिरिया सलेमपुर से प्रधान सोनल तिवारी कहती हैं कि अधिकांश देखा गया है कि एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का छात्र अपने घर का अपने घर का फ्यूज नहीं बदल सकता। ऐसे में पंद्रह बीस साल स्कूल काॅलेज की पढ़ाई में बच्चों को अन्य जानकारी के अलावा ऐसा कुछ दिया जाए कि वह उसका उपयोग रोजमर्रा की जरूरतों में कर सकें। मैंने अपनी ग्रेजुएशन तक की सारी शिक्षा के बारे में सोचा। लेकिन मुझे एक भी बात ऐसी याद नहीं आई जो एक मरीज की देखभाल करने में उपयोगी हो।