जालौन। हाल ही में विश्व पर्यटन दिवस पर जिलाधिकारी डाॅ. मन्नान अख्तर ने जनपद के गौरवशाली इतिहास और पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जालौन टूरिज्म नाम से बेबसाइट लांच की है। इसके अलावा ऐतिहासिक धरोहरों की वीडियोग्राफी कराकर एक वीडियो भी लांच किया गया है। जनपद की धरोहरों की सूची में नगर के तहसील परिसर में स्थित एतिहासिक स्थल ताई बाई महल को भी स्थान मिला है। जिससे नगर के लोग गौरवांवित महसूस कर रहे हैं।
ताईबाई के महल अपने आप में 1857 की क्रांति की गाथा को बखूबी वर्णन करता है। भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में जिन नामों से हम सुपरिचित हैं, उनके अतिरिक्त भी कई ऐसी वीर क्रांतिकारी महिलाएं और पुरूष रहे हैं जिनके पराक्रम को समय के साथ भुला दिया गया। हालांकि स्थानीय स्तर पर आज भी उन क्रांतिकारियों की वीर गाथाएं लोगों की जुबान पर चढ़ी हुई हैं और लोग अपने उन वीरों पर गर्व भी महसूस करते हैं।
स्वतंत्रता की अलख जगाने में ऐसे ही महान क्रांतिकारियों से नगर का भी जुड़ाव रहा है। इनमें से जालौन राज्य की शासिका वीरांगना ताईबाई का नाम महान क्रांतिकारियों की गौरवमयी परंपरा से जुड़ा हुआ है। नाना साहेब पेशवा की मृत्यु के बाद उनकी आत्मजा ताईबाई ने जालौन राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। रानी लक्ष्मीबाई का कुशल नेतृत्व, अखंड देशभक्ति का सीधा प्रभाव बालिका ताईबाई के हृदय पर अंकित था।
नाना साहब अपने जीवनकाल में गढ़ी पर बने विशाल दुर्ग में रहते थे। जबकि ताईबाई ने अपना आवास रानी महल में सुरक्षित करवा लिया था। मराठा साम्राज्य का यह महल अपनी प्राचीनता और ध्वनाशेष के साथ आज भी ताईबाई की गौरवगाथा गाता नजर आता है। पूर्व में इसी महल के अंदर तहसील कार्यालय, तहसीलदार का निवास एवं एक भाग में मुंसिफ मजिस्ट्रेट का कार्यालय रहा है। लेकिन बाद में इमारत जर्जर होने पर इसी परिसर के बाहर नए तहसील भवन व एसडीएम कार्यालय का निर्माण करा दिया गया।
इस महल के बीचों-बीच बने आंगन में पीपल का एक विशाल वृक्ष और एक शिव मंदिर है। जिसके बारे में बताया जाता है कि इस शिव मंदिर में ताईबाई पूजा अर्चना करतीं थीं। 1857 की क्रांति के बाद 11 जून 1858 को ताईबाई के नेतृत्व में जालौन में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष प्रारंभ हो गया। ताईबाई की वीरता और राष्ट्रप्रेम से प्रभावित अन्य क्षेत्रीय राजाओं ने भी संघर्ष में उनका साथ दिया। उनके इस आंदोलन को दबाने के लिए उरई में रहने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एनजी टरनन ने नाना साहब के किले पर जागीरदार केशवराव को किलेदार नियुक्त कर दिया। जिसने अंग्रेजों के इस अहसान का बदला ताईबाई का साथ विरोध कर चुकाया। इस बात के प्रमाण उपलब्ध हैं कि ताईबाई के आंदोलन को लेकर डिप्टी कमिश्नर ने इसकी सूचना 18 जून 1858 को अपने उच्चाधिकारियों को भी भेजी थी।
मराठा वंशज और इतिहासकार विजय मोहन भागवत के अनुसार ताईबाई का महल 17वीं शताब्दी में निर्माण कराया गया था। इस महल में कई गुप्त द्वारों और सुरंगों का निर्माण कराया गया था। यह सुरंग कहां निकलती थीं यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है। अंग्रेजों के आधिपत्य के बाद उन्होंने इन सुरंगों के निकलने का स्थान पता लगाने की कोशिश की लेकिन कोई सफलता न मिलने पर उन्होंने सुरंगों के द्वार को बंद करा दिया। वह बताते हैं कि ताईबाई के आंदोलन को कुचलने के लिए जब अंग्रेजों ने जालौन पर आक्रमण किया तो ताईबाई अपने साथियों के साथ पहले रायपुर मड़ैया गई और फिर बाद में कुठौंद पहुंची। जहां अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर इलाहाबाद जेल भेज दिया। वहीं, उन्होंने अंतिम सांस ली। लेकिन अपने प्राणों की रक्षा के लिए उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगने इंकार कर दिया था। उन्होंने मृत्यु को गले लगा लिया लेकिन उनकी दासता स्वीकार नहीं की। यही कारण है कि आज भी लोग उनको याद करने में गर्व महसूस करते हैं। वर्ष 1967 में तत्कालीन तहसीलदार अजब सिंह ने ताईबाई के महल का जीर्णोद्धार कराया था। उसके बाद देखरेख के अभाव में इस महल का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया। लेकिन यह महल आज भी ताईबाई के जीवन की गौरवमयी यात्रा का वर्णन करता नजर आता है।
-राजा सिंह सेंगर गधेला कहते हैं कि जनपद में पर्यटन की विशेष संभावनाएं हैं। नगर में ताई बाई के महल को स्थान मिलने से नगर के लोग गौरवांवित हैं। लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि अब इसका संरक्षण भी आवश्यक है। इसके लिए वह जिलाधिकारी से मांग करते हैं कि ताईबाई के ऐतिहासिक महल का जीर्णोद्धार कराकर क्षतिग्रस्त हिस्से को सही कराया जाए ताकि लोग इसकी ओर आकर्षित हों।
-कवि महेंद्र पाटकार मृदुल कहते हैं कि जालौन नगर में ताई बाई के महल के अलावा भी कुछ अन्य धरोहर हैं जैसे ऐतिहासिक पतंगेश्वर मंदिर, छठी माता का मंदिर, द्वारिकाधीश मंदिर आदि भी पर्यटन के उद्देश्य से विकसित किए जा सकते हैं। जिलाधिकारी को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। ताईबाई के महल का जीर्णाद्धार कराकर वहां उनकी जीवनी के बारे में भी लिखा जाए।