भारत को अखंड भारत बनाने वाले राजनेता की पुण्यतिथि पर विशेष सामग्री   : अनिल शिवहरे

जालौन। सरदार वल्लभ भाई पटेल पूरा नाम वल्लभ झावेरभाई पटेल निधन 15 दिसंबर 1950 जिन्होंने भारत के पहले उप प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वल्लभ भाई पटेल जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे। उनकी पुण्यतिथि पर सुरभि संदेश उनके व्यक्तित्व को प्रदर्शित् करते हुए आपके समक्ष कुछ दुर्लभ फोटो व उनके संबंध में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कर रहा है।

      सरदार पटेल को भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता भी कहा जा सकता है। गुजरात के नडियाद में लेवा पटेल (पाटीदार) कुल में 31 अक्टूबर 1875 को जन्मे सरदार पटेल झावेरभाई पटेल व लाडबा देवी की चैथी संतान थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्ठल भाई उनके अग्रज थे। 20 की उम्र में मैट्रिक पास की और लंदन में बैरिस्टर की पढ़ाई करके लौटे पटेल ने अहमदाबाद में वकालत में नाम कमाया। बाद में महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने वकालत को छोड़कर समाजसेवा के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी पहचान बनाई। भारतीय गणराज्य में भारत की तितर बितर रियासतों को एकीकृत करने के कारण उन्हें ‘लौह पुरूष' की संज्ञा दी गई।

-सक्रियता-

      स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान वर्ष 1918 में खेड़ा में हुआ। गुजरात का खेड़ा खंड उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से कर में छूट की मांग की। जिसे अंग्रेजों ने स्वीकार नहीं किया। तब पटेल ने किसानों को प्रेरित किया। उनके संघर्ष के बाद सरकार झुकी और करों में राहत दी गई। यह पटेल की पहली सफलता थी। 

     इसके बाद वर्ष 1928 में गुजरात के बारडोली में किसानों द्वारा किए गए सत्याग्रह का पटेल ने नेतृत्व किया। जिसमें 30 प्रतिशत तक बढ़ाए गए लगान को उनके सत्याग्रह के बाद अंग्रेजों को कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। बारडोली सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। बताया जाता है कि सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था। वे अहमदाबाद में किराए के मकान में रहते थे। 15 दिसंबर 1950 को जब मुंबई में उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में मात्र 260 रुपये मौजूद थे।

           आजादी के बाद माना जाता है कि यदि महात्मा गांधी का नेहरू प्रेम न होता तो सरदार वल्लभभाई पटेल ही देश के पहले प्रधानमंत्री होते। वह महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे। इसी के चलते प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे होने के बावजूद उन्होंने महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। जिसके बाद जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ। देश की स्वतंत्रता के पश्चात् सरदार पटेल देश के उपप्रधानमंत्री के साथ ही प्रथम गृह मंत्री, सूचना मंत्री और रियासत विभाग के मंत्री भी बने। हालांकि नेहरू और पटेल में संबंध तनावपूर्ण ही रहे। कई बार दोनों ने त्यागपत्र देने की भी धमकी भी दी। लेकिन यह संबंध वैचारिक रूप से ही तनावपूर्ण रहे। जबकि देशहित में दोनों के विचार समान थे।नके निधन के पश्चात् वर्ष 1991 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा। जिसे उनके प्रपौत्र विपिन भाई पटेल ने स्वीकार किया। 

-उप प्रधानमंत्री व गृहमंत्री बनने के बाद-

आजाद भारत के गृहमंत्री बनने के बाद उनकी पहली प्राथमिकता देशी रियासतों को भारत में मिलाना था। जिसे उन्होंने अपने बुद्धि कौशल से बिना खून बहाए पूरा किया। उस समय उन्होंने देश में फैली 562 रियासतों को भारत में मिलाकर अपनी क्षमता का परिचय दिया। भारत के एकीकरण में महान योगदान के लिए उन्हें ‘भारत का लौह पुरूष’ कहा गया। 

         स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। नेहरू प्रायः सोचते रहते थे, सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी परंतु उनमें किंचित भी अहंकार नहीं था। वे स्वयं कहा करते थे, ‘मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है।’ जबकि पं. नेहरू को गांव की गंदगी और ग्रामीण जीवन से चिढ़ थी। पं. नेहरू अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे और समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। 

यद्यपि विदेश विभाग पं. नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता। 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन और उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण एवं विश्वासघाती बतलाया था। पत्र में उन्होंने चीन को भारत का दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लंबी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा ‘क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।’ नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे। यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती। 

       गृहमंत्री के रूप में पटेल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा। यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवतः नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। मना जाता है कि उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल उपाधि के ही सरदार नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे।

-कैसे किया रियासतों का विलय-

स्वतंत्रता के समय भारत में 562 देशी रियासतें थीं। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है। इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन वे परेशान हो उठे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वीपी मेनन को साथ लिया और चल पड़े। 

           वे उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, ‘कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।’ उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई। फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता, तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी। पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया। एक शाम मुंबई तत्कालीन बंबई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए। पटेल पंजाब गये। पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की। सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि ‘क्या मर्जी है?’ राजा कांप उठा। आखिर 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया।

         केवल जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं ने उस समय विलय को नहीं स्वीकारा। जूनागढ सौराष्ट्र के पास एक छोटी रियासत थी। वहां के नवाब ने 15 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में विलय की घोषणा कर दी। राज्य की सर्वाधिक जनता हिंदू थी और भारत विलय चाहती थी। नवाब के विरुद्ध बहुत विरोध हुआ तो भारतीय सेना जूनागढ़ में प्रवेश कर गई। नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया और 9 नवम्बर 1947 को जूनागढ़ को भारत में मिला लिया गया। फरवरी 1948 में वहां जनमत संग्रह कराया गया, जो भारत में विलय के पक्ष में रहा। 

       हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भूमि से घिरी थी। वहां के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा। वह ढेर सारे हथियार आयात करता रहा। इसे देखकर सरदार पटेल चिंतित हो उठे। इसको देखते हुए पटेल ने खुद निजाम से भेंट करने की योजना बनाई थी। निजाम से मुलाकात के दौरान पटेल ने साफ कर दिया था कि या तो वो शांतिपूर्ण तरीके से भारत में शामिल हो जाएं नहीं तो भारतीय फौज हैदराबाद में घुसने में कोई देर नहीं लगाएगी। इसके बाद जो कुछ होगा उसकी जिम्घ्मेदारी केवल निजाम की ही होगी। अन्ततः भारतीय सेना 13 सितंबर 1948 को ‘आपरेशन पोलो’ के तहत हैदराबाद में प्रवेश कर गई। तीन दिनों के बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और नवंबर 1948 में भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस दौरान न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था। 

        नेहरू ने काश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। वह कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्रसंघ में ले गए। परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह एवं कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। अब 5 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के प्रयास से कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 और 35(अ) समाप्त हुआ। अब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन चुका है। इस प्रकार सरदार पटेल का भारत को अखंड बनाने का स्वप्न साकार हुआ। 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में दो केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आए।

-सम्मान- 

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी अर्थात् एकता की मूर्ति। 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित एक छोटे चट्टानी द्वीप ‘साधू बेट’ पर सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया। यहां लौह से निर्मित सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया, अतः इस स्मारक का नाम ‘एकता की मूर्ति: स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ रखा गया है। इसकी ऊंचाई 240 मीटर है, जिसमें 58 मीटर का आधार है। मूर्ति की ऊंचाई 182 मीटर है। यह विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति का गौरव रखती है। एक छोटे चट्टानी द्वीप साधू बेटश् पर स्थापित किया गया है जो केवाडिया में नर्मदा नदी के बीच स्थित है। वर्ष 2018 में तैयार इस प्रतिमा को प्रधानमंत्री मोदी ने उनके जन्म दिवस 31 अक्टूबर 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया। यह प्रतिमा 5 वर्षों में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही उनके जन्म दिन 31 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया था।

-परिवार-

वल्लभ भाई की शादी झबेर बा से हुई। पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे, तब उनकी पत्नी का निधन हो गया। उनकी बेटी मणिबेन आजीवन अविवाहित ही रहीं। उनके बेटे डाया भाई का विवाह यशोदा बेन के साथ हुआ था। यशोदा बेन के निधन के समय डाया भाई 27 साल के थे। उनके निधन के बाद डाया भाई ने भानुमति बेन से दूसरी शादी कर ली। जिनसे उनके दो बेटे हुए, विपिन पटेल और गौतम पटेल। यह दोनों भाई राजनीति से दूर ही रहे। यहां तक कि सरदार पटेल के नाम पर होने पर राजनीति से भी उन्होंने खुद को हमेशा दूर रखा। साल 1991 में जब सरदार पटेल को मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया तो उनके पोते विपिन भाई सम्मान लेने गए थे। विपिन भाई पटेल के निधन के बाद गौतम भाई पटेल ही प्रपौत्र के रूप में सरदार पटेल के निकट संबंधियों में रह गए हैं। गौतम भाई भी सरदार पटेल की विरासत और उससे जुड़ी शोहरत से हमेशा से दूर रहे हैं।

-अंतिम समय- 

वर्ष 1941 से पटेल को आंतों में तकलीफ शुरू हो गई थी। मार्च 948 में उनकी बीमारी बढ़ गई। जिसके बाद उनके डॉक्टरों ने उनकी सुबह की सैर पर भी रोक लगा दी थी और लोगों से उनका मिलना-जुलना भी कम कर दिया था।1948 समाप्त होते होते पटेल चीजों को भूलने लगे थे और कुछ ऊंचा भी सुनने लगे थे। 21 नवंबर, 1950 को मणिबेन को उनके बिस्तर पर खून के कुछ धब्बे दिखाई दिए। तुरंत उनके साथ रात और दिन रहने वाली नर्सों का इंतजाम किया गया। कुछ रातों में उन्हें ऑक्सिजन पर भी रखा गया। दिसंबर की वह सर्दियां पटेल के लिए काफी तकलीफदेह थीं। पांच दिसंबर आते आते पटेल को अंदाजा हो गया था कि उनका अंत करीब है। 6 दिसंबर को राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद उनके पास आकर करीब 10 मिनट बैठे। लेकिन पटेल इतने बीमार थे कि उनके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। इसके बाद अगले दो दिनों तक वह कबीर की पंक्तियां ‘मन लागो मेरो यार फकीरी’ गुनगुनाते रहे। अगले ही दिन डॉक्टरों ने तय किया कि पटेल को मुंबई ले जाया जाए, जहां का बेहतर मौसम शायद उनको रास आ जाए। 

     12 दिसंबर, 1950 को सरदार पटेल को वेलिंग्टन हवाईपट्टी ले जाया गया, जहां भारतीय वायुसेना का डकोटा विमान उन्हें बंबई ले जाने के लिए तैयार खड़ा था। विमान की सीढ़ियों के पास राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, पूर्व गवर्नर जनरल सी राजगोपाचारी और उद्योगपति घनश्यामदास बिरला ने उन्हें विदा किया। पटेल ने सबसे मुस्करा कर विदा ली। करीब साढ़े चार घंटे की उड़ान के बाद पटेल बंबई के जुहू हवाई अड्डे पर उतरे। हवाईअड्डे पर बंबई के पहले मुख्यमंत्री बीजी खेर और मोरारजी देसाई ने उनका स्वागत किया। राज भवन की कार उन्हें बिरला हाउस ले गई। लेकिन उनकी हालत बिगड़ती चली गई। 15 दिसंबर, 1950 की सुबह तीन बजे पटेल को दिल का दौरा पड़ा और वो बेहोश हो गए। चार घंटो बाद उन्हें थोड़ा होश आया और उन्होंने पानी मांगा। बेटी मणिबेन ने उन्हें गंगा जल में शहद मिला कर चम्मच से पिलाया। सुबह 9 बजकर 37 मिनट पर सरदार पटेल ने अंतिम सांस लेकर इस दुनिया से अलविदा कह दिया।

      दोपहर बाद नेहरू और राजगोपालाचारी दिल्ली से बंबई पहुंचे। नेहरू के न चाहने के बावजूद राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी बंबई पहुंचे। बाद में केएम मुंशी ने अपनी किताब ‘पिलग्रिमेज’ में लिखा, ‘नेहरू का मानना था कि राष्ट्रपति को किसी कैबिनेट मंत्री की अंतयेष्टि में भाग नहीं लेना चाहिए. इससे गलत परंपरा शुरू होगी।’ बहरहाल अंतिम संस्कार के समय राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू और सी राजगोपाचारी तीनों की आंखों में आंसू थे। राजगोपालाचारी और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पटेल की चिता के पास भाषण भी दिए। राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद बोले, ‘सरदार के शरीर को अग्नि जला तो रही है, लेकिन उनकी प्रसिद्धि को दुनिया की कोई अग्नि नहीं जला सकती।’

फोटो: आजाद भारत की पहली कैबिनेट. (बाएं से खड़े) एनवी गाडगिल, केसी नियोगी, बीआर अंबेडकर, एसपी मुखर्जी, एनजी अयंगार, जयरामदास, दौलतराम. (बाएं से बैठे) आरए किदवई, बलदेव सिंह, एके आजाद, जवाहरलाल नेहरू, भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी, सरदार पटेल, अमृत कौर, जॉन मथाई और जगजीवन राम

फोटो: सरदार पटेल परिवार के साथ

फोटो: सरदार पटेल गांधी के साथ फुर्सत के क्षणों में

फोटो: डाॅ. राजेंद्र प्रसाद से उप प्रधानमंत्री की शपथ ग्रहण करते हुए पटेल

फोटो: अब्दुल गफ्फार खां व नेहरू के साथ पटेल

फोटो: अंतिम शैया पर सरदार पटेल का पार्थिव शरीर

फोटो: सरदार पटेल की मूर्ति स्टेच्यू आफ यूनिटी के तुलना में दुनियां की अन्य मूर्तियां

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