सचमुच खून के रिश्तों से ही नहीं, अपने कर्मों से भी कोई खून के रिश्तों से सगा हो सकता है: कृष्णा शिवहरे

फोटो : भैया दूज के मौके पर राजा भैया को तिलक करती कृष्णा शिवहरे

जालौन। इस संसार में सबसे बड़ा रिश्ता खून के रिश्ते को माना जाता है। लेकिन कभी कभार ऐसा भी होता है कि जो खून के रिश्ते से नहीं जुड़ा हुआ होता है। अपने क्रिया कलापों से वह इस रिश्ते से ऊंचा हो जाता है और सही शब्दों में कहा जाए तो ऐसे ही व्यक्ति महान होते हैं, यह कहना अतिश्योक्ति न होगी। आज आपको ऐसी ही एक शख्सियत से मिलवाना चाहती हूं। जो निस्वार्थ भाव से जुनून की हद तक गोसेवा के प्रति समर्पित हैं। गोसवा के कार्य से मेरे जीवन में उनकी अहमियत एक सगे भाई की तरह तरह ही है। 
        जालौन तहसील क्षेत्र के खर्रा गांव में साधु अंबिकानंद सरस्वती का आश्रम है। गांव के प्राकृतिक और सुरम्य वातावरण में स्थित इस आश्रम में पहुंचते ही एक सुखद व आध्यात्मिक अनुभूति होती है। मन कितना भी अशांत हो आश्रम में लगे पेड़ों की छांव के नीचे दो पल बैठकर शांति का अहसास होता है। पेड़ों पर बैठे पक्षियों के कलरव को सुनकर मन सहसा ही गहराइयों में उतर जाता है। आश्रम में जीवनदायिनी गोमाता भी आश्रय पाती हैं। सचमुच इन कपिला, कामधेनु, श्यामा, गौरी पर प्यार से हाथ फेरकर बचपन की सुखद स्मृतियां ताजा हो उठती हैं। बचपन में अक्सर परिजन मुझे इस आश्रम में ले जाते थे। शहर के कोलाहल से दूर इस शांत वातारवरण में पहुुंचकर लगता था कि प्रकृति स्वयं की मेरे स्वागतम के लिए तत्पर है।
      इसी आश्रम में सेवा भाव से कार्य करने वालेे एक व्यक्ति ने बरबस मेरा ध्यान आकृष्ट किया। जिनके सेवा भाव को देखकर लगा कि इनके लिए भाई से बड़ा संबोधन कुछ नहीं हो सकता। उन्हें हम प्यार से राजा भैया कहते हैं। इस गोआश्रम में राजा भैया जैसा सच्चा और साहसी गो भक्त मैंने आज तक नहीं देखा है। उनको देखकर हृदय से यही उद्गार निकलते हैं कि ऐसा निःस्वार्थी, कर्मठ और योगी सभी बहिनों को मिले।
          बाद में घरेलू समस्याओं को जीवन की आपाधापी के बीच उक्त आश्रम में जाना कम होता गया। लेकिन राजा भैया से जुड़ा रिश्ता कम नहीं हुआ। भैया दूज और रक्षाबंधन के मौके पर वह अपनी इस छोटी बहन से मिलने अवश्य आते हैं। उनका तिलक कर मैं स्वयं को धन्य समझती हूं। इस दौरान वह गाय से होने वाले लाभों के बारे में काफी जानकारियां भी देते हैं। उनसे मिलकर कुछ पल के लिए उसी बचपन की स्मृतियों और प्राकृतिक वातावरण में गोमाता से घिरी हुई मैं स्वयं को पाती हूं। 

फोटो: खर्रा गोशाला में चारे के इंतजार में खडी गायें


इस पावन दीपकोत्सव पर्व के बाद भाई दूज के शुभ अवसर एक बार फिर राजा भैया हमारे यहां आ कर हमें कृतार्थ किए। लेकिन इस बात वह काफी खिन्न और गुस्से से भरे हुए नजर आए। उनके साथ गांव के पूर्व प्रधान करन सिंह भी आए हुए थे। जब मैंने उनकी समस्या के बारे में जानना चाहा तो राजा भैया ने तो कुछ बताया नहीं (शायद वह मुझे उदास नहीं करना चाहते थे), लेकिन पूर्व प्रधान करन सिंह ने बताया कि कल उनकी राजा भैया से कल बहस हो गई। वह क्रोध में यूं कह रहा था कि गांव में स्थित अस्थाई गोशाला में बंद सैंकड़ों गायों को वह खोलकर छुट्टा देगा।
            अब राजा भैया ने अपना मुंह खोला और बताया कि क्योंकि गोशाला में गायों के लिए चारा पानी की व्यवस्था नहीं है। गोशाला में बंद गायें भूख और प्यास से व्याकुल रहती हैं। गांव के वर्तमान प्रधान से भी वह कई प्रार्थना कर चुका है लेकिन वहां से भी कोई मदद नहीं मिली। जिससे निराश होकर उत्तेजना में राजा भैया गुस्से में दांत पीसकर कह रहे थे कि वह सारी गायों को स्वतंत्र कर देगा, जिससे गायें स्वयं अपना निर्वाह कर सके। 
       राजा भैया ने इस समस्या का मासूम हल ढूंढ लिया था कि गायों को स्वतंत्र करने से किसान और भड़क जाएंगे जिसके बाद ग्राम प्रधान की लानत मलामत होगी हो सकता है उन्हें किए सजा किसान उन पर लट्ठ बरसाकर दे दें। कम से कम इसके बाद तो गायों के चारा पानी की व्यवस्था गोशाला में हो ही जाएगी।     तब करन सिंह चाचा समझाते हुए बोले जो भी होगा देखा जाएगा। मैं सब सह लूंगा लेकिन मैं यह नहीं देख सकता कि गायें भूखी प्यासी इस गोशाला में बंद रहें। 
करन सिंह चाचा ने बताया कि राजा भैया अकेले स्वयं के प्रयास से चारा काटकर गोशाला में ले गए। लेकिन अकेला राजा भैया कितना करते। वहां चारा डालते ही भूख से व्याकुल गायें चारा देखते ही उस पर टूट पड़ती हैं। अधिकांश गायों को तो चारा मिलता ही नहीं है जिन्हें मिलता भी है वह भी अतृप्त ही रहती हैं। इस हृदय को द्रवित करने वाले दृश्य को देखकर राजा भैया का अबोध मन और भी व्याकुल हो उठता है।
राजा भैया ने प्रण लिया कि वह भी तब तक भोजन नही करेगा, जब तक कि सारी गायें तृप्त नहीं हो जाती। क्रोध में वह गोशाला से गायों को स्वतंत्र करने के लिए जा ही रहा था कि करन सिंह चाचा ने मदद का आश्वासन दिया और अपना ट्रैक्टर निकालकर पिपरमेंट प्लांट पर पहुंचे। जहां उन्होंने पिपरमेंट का वेस्ट निकलवाकर 2 ट्राली में भरकर गोशाला में पहुंचाया। जिसे खाकर गायें तृप्त हुईं। जब गायें खा चुकीं तब कहीं जाकर राजा भैया ने भोजन गृहण किया। राजा भैया कह रहा था गोवर्धन पूजा के पर्व पर गाय भूखी रहें और वह भोजन कर ले। यह तो उससे हो ही नहीं सकता था। गायों को भूखा छोड़कर एक कौर भी उसके लिए खाना पाप होता। 
कितना अनूठा व्यक्तित्व ! जीव मात्र के लिए दया। यह बहुत कम लोगों में देखने को मिलता है। अपने गुरु के बीमार होने पर अपना परिवार छोड़ कर गुरु की सेवा के साथ ही गोसेवा के कार्य में निस्वार्थ भाव से जुड़े राजा भैया जैसे भाई को पाकर मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूं कि ईश्वर ने ऐसे भाई से उन्हें मिलवाया। मेरा बहुत सौभाग्य है, जो ऐसा भाई मुझे मिला। भाई दूज के मौके पर उनका तिलक करते हुए आज मैं बहुत स्वयं में गौरव प्रतीत कर रही हूं। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि राजा भैया को हमेश स्वस्थ्य रखें और अन्य लोग उनसे प्रेरणा पाकर गोसेवा जैसे महान कार्य को अपनाएं।

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