जालौन। शनिवार, 17 अक्टूबर 2020 देवी शक्ति स्वरूपा मां शैलपुत्री का दिन। नारी पुूजा का सबसे बड़ा पर्व। भोर होते ही जहां लोग देवी मंदिरों में जाकर मां की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद पाना चाह रहे थे। वहीं, दूसरी ओर एक अभागी नवजात कन्या मलंगा नाले में पड़ी हुई अपनी अंतिम सांसें गिर रही थी। जिसने भी यह दृश्य देखा, उसकी आंखें नम हो गई। आखिर क्यों एक नवजात को अपनी जान गंवानी पडी, क्या कारण था कि एक मां को अपने कलेजे के टुकड़े को यूं नाले मंे फेंक देना पड़ा। उस नवजात और उसकी मां के बारे में कोई नही ंजानता, लेकिन दोनों ही अपने पीछे एक गंभीर प्रश्न छोड़कर गईं।
17 अक्टूबर 2020 दिन शनिवार की सुबह कोई आम सुबह नहीं थी। बल्कि हम भारतीयों के लिए देवी शक्ति स्वरूपा नवरात्रि का पहला दिवस था। इस दिन देवी मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा के लिए लेागों ने विशेष तैयारियां कर रखी थीं। नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में नवरात्रि से पूर्व देवी मंदिरों को आकर्षक व भव्य स्वरूप प्रदान किया गया था। सुबह हर घर में देवी भक्त महिला, पुरूष भोर में ही उठकर नहा धोकर देवी मां की पूजा अर्चना के लिए तैयार थे। अभी उजाला भी ठीक से न हुआ था कि भक्तों का देवी मंदिरों में तांता लगना शुरू हो गया था। वह तो प्रशासन की अनुमति न थी वरना देवी भक्त पांडाल सजाकर रातभर जागने को आतुर बैठे थे। देवी मंदिरों में एक के एक महिला पुरूषों का आना जाना लगा था। भक्तिमय माहौल में जय माता दी के जयकारे गुंजायमान हो रहे थे।
दूसरी ओर इसके ठीक विपरीत एक हृदय को द्रवित करना दृश्य और चल रहा था। लेकिन उसे किसी ने देखा नहीं। एक मां अपने नवजात कलेजे के टुकड़े को दिल पर पत्थर रखकर नगर से लगभग 5 किमी दूर मलंगा नाले में बहा रही थी। आखिर उस मां के दिल पर कलेजे के टुकड़े को नाले में बहाते समय क्या गुजर रही होगी, यह तो वह ही जानती होगी। जिस प्रकार शांति पूर्वक उस नवजात को नाले में बहाया गया। उसी प्रकार शांतिपूर्वक उस नवजात ने भी अंतिम सांसें लेकर इस निर्दयी दुनिया को अलविदा कह दिया। एक प्रकार से यह ठीक ही हुआ यदि जिंदा रहती तो दरिंदे उसे नोंच खाते। लेकिन उसके मन में एक सवाल जरूर उमड़ रहा होगा कि आखिर उसने इस दुनियां में आकर क्या गलती की थी कि उसे धरती पर ठीक से सांस लेन का भी मौका न मिला।
सुबह दिन के उजाले में जब लोगों को दिखना शुरू हुआ मंदिरों पर आते जाते समय किसी ग्रामीण की नजर मलंगा नाले में पानी में तैर रहे उस नवजात के शव पर पड़ी। फिर क्या था जंगल में आग की तरह यह खबर फैली और लोग अपनी पूजा अर्चना और काम धाम सब छोड़कर उस नवजात के शव पर आंसू बहाने पहुंच गए। जब लोगों का मजमा जुटा तो तरह तरह की बातें उठना भी शुरू हो गईं। कोई नवजात के शव पर आंसू बहा रहा था तो कोई मां को कुलटा, बेहया, दरिंदी आदि शब्दों के विशेषण से नवाज रहा था। ऐसी स्थिति में जो बातें हो सकती थीं, वह सब उस स्थान पर हो रही थीं। इस बात को छोड़कर कि आखिर उस मां को इस नवजात को नाले में क्यों बहाना पड़ा, इसके लिए जिम्मेदार कौन है। एक नवजात जो अपने पैदा होने के बाद ठीक से रो भी न सकी क्यों उसे पानी में घुट घुटकर अपना दम तोड़ना पड़ा।
नवजात, जो देवी का अवतार थी। उसके फेंकने के दो कारण हो सकते हैं एक यह कि कोई ऐसा पति अथवा परिवार जो कन्या को कलंक मानता है अथवा उस नवजात की मां का बिन ब्याहे मां बन जाना। इसके अतिरिक्त अन्य कोई कारण समझ नहीं आता है। यदि आपको आता हो जरूर अवगत कराएं। अभी उक्त कारणों पर ही लौट आते हैं। उक्त दोनों कारणों में इस निर्मम घटना का जिम्मेदार आप किसे मानते हैं। क्या आप यह नहीं मानते हैं कि आज भी जब बेटियां अपना नाम कमा रही हैं। हर क्षेत्र में बेटियां किसी से कमतर नजर नहीं आ रही हैं। ऐसी स्थिति में भी हमारे मन में बेटे की चाह ही रहती है। क्यों नहीं हम बेटा और बेटी को एक समान मान लेते हैं। देानों की परिवरिश एक ही ढंग से नहीं कर सकते हैं। आखिर कब तक उन्हें यूं अपने पैदा होने का शोक मनाते रहना होगा।
यदि दूसरा कारण सत्य है तो बिन ब्याहे मां बन जाना हमारे समाज में अभिशाप की तरह नहीं है। यदि उस नवजात की मां अपने कलेजे के टुकड़े को जीवित रखने का निर्णय ले लेती तो क्या हम और आप उस नवजात की मां को बख्श देते। अरे हम और आप ही वह पहले व्यक्ति होते जो उस पर बदचलन होने का दावा ठोंक देते। गांव में कितनी ही कहानियां गढ़ ली जाती। कोई भी उस घर का पानी पीना भी पसंद न करता। उसको शब्दों के वाण से बेधकर हम और आप ही तिल तिलकर मरने को मजबूर कर देते।
अब इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने का उपाय क्या है। इस बारे में हम पूर्व में भी चर्चा कर चुके हैं। हमें अपने आप को बदलना होगा। अपने परिवार के सदस्यों और खासकर किशोरवय बच्चों को संस्कारित करना होगा। उन्हें शिक्षा के साथ संस्कार भी देने होंगे। बच्चे टीवी और मोबाइल पर कौन सी सामग्री देख रहे हैं। इस पर नजर रखनी होगी। प्रेरक प्रसंगों के अलावा बच्चों का दोस्त भी बनना होगा। ताकि वह अपनी कोई समस्या आपको बेझिझक बता सकें। उन्हें ऊंच, नीच, गुण दोष बताने के स्थान पर जीवन जीने के तरीके बताने के प्रयास करें। तब हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकेंगे। अन्यथा इस प्रकार की घटनाएं होती रहेंगी और लोग तमाशा देखकर आगे बढ़ते रहेंगे।