1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बलिदानी महिलाओं में कानपुर की नाचने गाने वाली महिला अजीजन बेगम का नाम विशेष उल्लेखनीय है। अजीजन बेगम का जन्म 1832 में हुआ था। उनका जन्म लखनऊ में हुआ था। आगे चलकर दुर्भाग्य की मारी अजीजन कानपुर आकर मशहूर तवायफ़ उमराव जान अदा के साथ नाचने गाने का काम करने लगी। यहीं उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों से हुआ। नाना साहब के आह्वान पर अजीजन ने अंग्रेज़ों से टक्कर लेने के लिए स्त्रियों का सशस्त्र दल गठित किया एवं स्वयं उसकी कमान सम्भाली।
प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार सर जार्ज ट्रेवेलियन ने उसका वर्णन एक योद्धा के रूप में इस प्रकार किया है-घोड़े पर सवार सैनिक वेशभूषा में अनेक तमगे लगाए और हाथ में पिस्तौल लिए अजीजन बिजली की तरह अंग्रेज़ सैनिकों को रौंदती चली जाती थी। उसके साथ महिलाओं की घुड़सवार टुकड़ी भी घूमा करती थी। सैनिकों को हथियार देना, प्यासे सैनिकों को पानी पिलाना एवं घायलों की देखभाल उनके महत्त्वपूर्ण कार्य थे। कानपुर पर विद्रोहियों का क़ब्ज़ा होने के बाद बंदी अंग्रेज़ स्त्रियों व बच्चों की हत्या के लिए विद्रोहियों को उकसाने वाली अजीजन ही थी।
सम्भवत: ऐसा उसने अंग्रेज़ों के अमानवीय अत्याचारों के कारण क्रोध और घृणा के आवेश में किया होगा। अंतत: अजीजन को गिरफ्तार कर अंग्रेज़ कमाण्डर सर हेनरी हेवलाक के समक्ष लाया गया। एक मुस्लिम क्रांतिकारी अजीम उल्लाह ख़ाँ का पता बताने की शर्त पर उसने माफ़ी देने वायदा किया गया। अजीजन ने ऐसा करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। अंतत: ‘हिन्दुस्तान अमर रहे’ का नाम लगाते हुए वह अंग्रेज़ों की गोली खाकर शहीद हो गई।
एक अन्य जानकारी के अनुसार
अजीजन बेगम एक नाचने वाली थी। उनमें देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए उन्होंने घुँघरू तक भी उतार दिए थे। रसिको की महफिल सजाने वाली क्रांतिकारियों के साथ बैठक करने लगी। कानपुर में जब नाना साहब के नेतृत्व में संग्राम शुरू हुआ तो अजीजन बाई ने भी उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। कहा जाता है कि नर्तकी होने के बावजूद अजीजन बाई के प्रति नाना साहब के मन में काफी सम्मान था और वह उनसे राखी भी बंधवाते थे। अजीजन क्रांतिकारियों की बैठक में भी शामिल होती थीं। वह बतौर सैनिक और गुप्तचर दोनों काम को बखूबी अंजाम देती थीं। नाचगाने के बहाने वह अंग्रेज सेना के राज नाना साहब के सेनापतियों को बतातीं तो दूसरी ओर उन्होंने मैदान में भी दुश्मनों को जमकर टक्कर दी। उन्होंने कुछ और महिलाओं को प्रशिक्षित कर 'मस्तानी टोली' बनाई। इस टोली की मदद से पहली लड़ाई में नाना साहब की सेना ने अंग्रेजों को हराकर भगा दिया। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने ज्यादा तैयारियों के साथ हमला कर कानपुर पर कब्जा कर लिया। अजीजन बाई भी उनकी गिरफ्त में आ गईं। कहते हैं कि उनकी खूबसूरती पर मुग्ध होकर अंग्रेजों ने उनके सामने अपनी सेना की सेवा करने का प्रस्ताव रखा लेकिन निडर अजीजन बाई ने सिर झुकाने के बजाय मौत को गले लगाना मंजूर किया।
अजीजन बेगम अपने तवायत का धंधा छोड़कर क्रांतिकारियों के साथ रहने लगी। कानपुर में उनकी मुलाकात नानासाहेब और तात्या टोपे से हुई। वहां पर नाना साहेब के आह्वान पर अजीजन ने अंग्रेजो से टक्कर लेने के लिए स्त्रियों का एक दल गठित किया। इस दल के कमान अजीजन बेगम ने खुद संभाली। यहां पर उन्होंने गंगाजल को साक्षी मानकर अंग्रेजों की हकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प भी लिया।
जून 1857 में इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को जोरदार टक्कर देते हुए विजय प्राप्त की और नाना साहिब को बिठूर का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं रही और 16 अगस्त को बिठूर में अंग्रेजो के साथ दोबारा भीषण युद्ध में यह क्रांतिकारी हार गए।
इन दोनों ही युद्धों में अजीजन बेगम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अजीजन बेगम ने युवतियों की एक ऐसी टोली बनाई जो मर्दाना वेशों में रहती थी। वे घोड़े पर सवार होकर हाथ में तलवार लेकर नौजवानों को आजादी के युद्ध के लिए प्रेरित करती थी। और वे घायलों का इलाज करते थे। और उनके घावों पर मरहम पट्टी करती थी ।
महान क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर ने लिखा है की ‘अजीजन बेगम एक नाचने वाली थी’ , लेकिन सिपाहियों को उनसे बेहद प्यार था।अजीजन बेगम का प्यार साधारण बाजारों में धन के लिए बिकने वाला नहीं था। उनका प्यार पुरस्कार स्वरूप उस व्यक्ति को दिया जाता था, जो देश से प्रेम करता था अजीजन बेगम के सुंदर मुख की मुस्कुराहट सिपाहियों को प्रेरणा से भर देती थी। उनके मुख पर भृकुटी का तनाव युद्ध से भागकर आए हुए कायर सिपाहियों को दोबारा रणक्षेत्र की और भेज देता था।
अजीजन को जब गिरफ्तार करके अंग्रेज कमांडर हेनरी हैवलॉक के समक्ष लाया गया तो क्रांतिकारी अजीमुल्ला खा का पता बताने की शर्त पर उसे माफी देने का वायदा किया। बेगम के सुंदरता पर अंग्रेजी अफसर मोहित हो उठे। और जनरल ने उनके समीप एक प्रस्ताव रखा कि यदि वह अपनी गलतियों को स्वीकार कर ले और अंग्रेजों से माफी मांग ले तो उनको माफ कर दिया जाएगा, और वे दोबारा अपनी रास-रंग की दुनिया सजा सकती है, नहीं तो उन्हें कड़ी से कड़ी सजा भुगतने के लिए तैयार होना पड़ेगा। लेकिन अजीजन बेगम ने इस क्षमा याचना को ठुकरा दिया।
इतना ही नहीं अजीजन बेगम ने हुंकार कर यह भी कहा कि माफी तो अंग्रेजों को मांगनी चाहिए जिन्होंने भारतीयों पर इतना जुल्म किया है उनके इस अमानवीय कृत्य के लिए वह जीते जी उन्हे कभी माफ नहीं करेंगी। यह कहने का अंजाम भी उसे मालूम था पर आजादी की इस दीवानी ने इसकी कोई परवाह नहीं की।
अजीजन बेगम के (नर्तकी) ऐसे जवाब को सुनकर अंग्रेजी अफसर को गुस्सा आ गया। और उन्होंने गोली मारकर अजीजन बेगम की हत्या कर दी।