तीन भाई बहनों ने स्वयं को क्यों रखा 10 साल एक ही कमरे में बंद, क्या है राज जानें      : जावेद अख्तर

क्या कोई अपनी मां से इतना प्यार कर सकता है कि वह 10 सालों तक सदमे में अपने आप को कमरे में बंद करे रहे। उसी कमरे में खाना पीना और मल त्याग करता है। आपको विश्वास नहीं होता न। लेकिन यह बिल्कुल सत्य है। आज आपको ऐसी एक हकीकत से रूबरू कराते हैं जहां एक नहीं बल्कि तीन भाई बहिन मां की मौत के बाद स्वयं को 10 सालों तक कमरे में बंद किए रहे। इसके बाद जो कुछ हुआ वह सचमुच रोंगटे खड़े कर देने वाला है। 

         कहानी की शुरूआत गुजरात के राजकोट में 10 वर्ष पूर्व से शुरू होती है। इस प्रकरण में कमरे में बंद युवाओं के माता पिता का नाम पिता के कहने पर सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। राजकोट शहर में मध्यम वर्गीय परिवार के दंपत्ति को तीन संतानें हुईं। जिनमें दो बेटे अमरीश और भावेश एवं एक बेटी मेघना ने जन्म लिया। पूरे परिवार में काफी प्यार मोहब्बत थी। शाम को पूरा परिवार साथ बैठकर खाना खाता। बड़े बेटे अमरीश की आयु जब लगभग 32 वर्ष, बेटी मेघना की आयु 25 और सबसे छोटे बेटे भावेश की उम्र 18 वर्ष थी तभी परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। एक बीमारी से ग्रसित हुई उनकी बच्चों की मां फिर उठ न सकी और उन्होंने दम तोड़ दिया।

         मां की मौत के बाद जहां पिता ने कुछ दिनों में स्वयं को संभाल लिया। लेकिन मां की मौत उनके बच्चों के जीवन की सबसे भयानक घटना बन गई। मां की मौत के बाद तीनों बच्चे बुरी तरह टूट गए और उन्होंने स्वयं को एक कमरे में बंद कर लिया। शुरू में पिता को लगा कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। कुछ दिनों में मां की मौत के बारे में बच्चे भूल जाएंगे। लेकिन बच्चों ने एक बार जब स्वयं को कमरे में बंद कर लिया तो फिर दोबारा से निकलने का नाम ही नहीं लिया।

        स्थिति यह हुई कि घर के उसी एक कमरे को उन्होंने अपना भोजन कक्ष, शयन कक्ष और अन्य कार्यों के प्रयोग के लिए बना लिया। पिता से उनकी यह हालत देखी नहीं जाती। कई बार समझाया लेकिन कोई असर नहीं हुआ। उसी कक्ष में भोजन, मल त्याग, लघुशंका आदि वह कर लेते। 10 वर्ष के लंबे समय के बाद पिता ने एक स्वयं सेवी संगठन की मदद ली। जिसके बाद तीनों को कमरे से बाहर निकाला गया।

         बेघरों के कल्याण के लिए काम करने वाले स्वंय सेवी संगठन साथी सेवा ग्रुप के अधिकारी जलपा पटेल एवं पिता की उपस्थिति में पिछले माह जब उस कमरे का दरवाजा तोड़ा गया तो अंदर दिखने वाले नजारे ने सभी के रौंगटे खड़े कर दिए। जिस कमरे में तीनों थे उस कमरे में बिल्कुल भी रोशनी नहीं थी। पूरे कमरे से बासी खाने और मल व मूत्र की दुर्गंध आ रही थी। कमरे के चारों ओर समाचार पत्र और अन्य सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था। एक कोने में मल का ढेर लगा था। तीनों भाई बहनों के बाल कमर के नीचे तक आ रहे थे। युवा होने के बावजूद तीनों पर बुढ़ापा हावी हो चुका था।

         देखने में हड्डियों का ढांचा बने तीनों भाई बहिन स्वयं उठकर खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। कमरे में चूहों और कीड़े मकोड़ों ने अपना डेरा बना लिया था। शरीर पर मौजूद घावों पर कीड़े रेंग रहे थे। उनमें इतनी भी ताकत न बची थी कीड़े और मक्खियों को वहां से हटा सकें। जैसे ही टीम के सदस्यों ने टार्च की रोशनी मारी तो तीनों के मुंह से चीख निकल गई। अचानक सामने आए प्रकाश को वह सहन न कर सके। उनकी यह हालत देखकर सभी का दिल दहल गया। किसी तरह टीम के सदस्यों ने उन्हें बाहर निकलवाया। उनका उपचार कराने के साथ ही उन्हें नहलवाया गया और उनके बाल कटवाए गए। उन्हें साफ सुथरे कपड़े पहनने के लिए दिए गए।

        पटेल के अनुसार शायद तीनों कोई मानसिक बीमारी से ग्रसित रहे होंगे। बताया कि तीनों को फिलहाल एक ऐसे स्थान पर भेजा गया है जहां उन्हें पौष्टिक भोजन और सही उपचार मिल सके। इसके अलावा उन्हें अवसाद से बाहर निकालने का भी प्रयास किया जा रहा है।

        सेवानिवृत्त सरकारी कर्मी पिता ने बताया कि उनके बच्चे पढ़े-लिखे हैं। बड़ा बेटा अमरीश अब (42) साल का है। उसके पास बीए, एलएलबी की डिग्री हैं और वह वकालत कर रहा था। बेटी मेघना (35) ने मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की है। सबसे छोटे बेटे भावेश (28) ने अर्थशास्त्र में स्नातक किया है और वह एक अच्छा क्रिकेटर भी था।

          वह रोज कमरे के बाहर खाना रख दिया करते थे ताकि उनकी मौत न हो। उसमें भी बच्चे कुछ खाते तो कुछ वहीं फेंक देते थे। जब उनसे बच्चों की यह हालत देखी नहीं गई तब उन्होंने स्वयं सेवी संगठन की मदद ली। पिता के अनुसार कुछ लोगों ने परिवार पर कोई काला जादू कर दिया है। यही वजह है कि उनके परिवार की यह हालत हो गई है। हालांकि अभी तक इस संबंध में पुलिस को कोई तहरीर नहीं दी गई है।

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